लो मैं लगा हूँ उकेरने आज प्यार तुम्हारा...


लो मैं लगा हूँ उकेरने आज प्यार तुम्हारा...
और देखो
सब निहार रहें हैं मुझे!
मेरी मुस्कुराहट सबको अपनी-सी लग रही है
मेरी हथेली में ढूंढ रहें हैं सब
अपना-अपना सौभाग्य!
वही हथेली-जिसपे चाँद बनाया था तुमने...
मेहंदी रंग का!
और मुझे वो धुधिया लगा था!
कितनी ठंडक है स्पर्श में तुम्हारे!
किसी को भिगो रहे हो-किसी को संभाल
किसी को समेट रहे हो-किसी को खंगाल...
तुम, कितने आप हो !
सभी रंग अपने को समर्पित कर चुके हैं
संगीत-सा आ गया है चेहरे पे मेरे
मेरा चेहरा तुम्हारा चेहरा है ना !
पलकें हैं ना तुम्हारी
पंखुरियाँ हैं ना जो गुलाब की...
और वो प्यारी-सी नखरो ठुड्डी...
.... मैंने तो सब अपना मान लिया है मन से...
बहूत प्यारे हो...
सुंदर भी!

Comments

Popular posts from this blog

घूर के देखता हैं चाँद

तुम उठोगे जब कल सुबह...

आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है...