अब भला दिन है क्या और धूप है क्या.


बोलता है तो पता लगता है
ज़ख्म उसका भी नया लगता है।
सुनता नहीं है जब वो कोई बात मेरी,
ख़ुदा कसम -बिलकुल-ख़ुदा लगता है।
मुहब्बतों की परख ना जाने कौन करे?
दावा-ए-उल्फ़त हो गया हवा... लगता है।
मैं तुमसे कुछ पूछूं और तुम खामोश रहो !
ऐसा तो-सच कहूँ- ख्वाब भी सज़ा लगता है।
अब भला दिन है क्या और धूप है क्या...?!
चल 'शिख़र ' काम पे चल- सूरज चढ़ा लगता है।

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