अच्छे साथियों का साथ तो... सबको ही अच्छा लगता है।

दो ज़बानें
अलग अलग तौर-तरीके
अपने अपने ढंग जीने के
मरने के।
बातों में छुपे मतलब भी भिन्न-भिन्न
कागज़ अलग-वर्ण और शब्द भी अलग।
नाम भी एक जैसा नहीं...
और दाम भी नहीं
एक सा.....

फिर भला इतना अपनापन....
कहाँ बोया- कहाँ से उग आया है ये...
इतनी हथेलियों का साथ....
जैसे
मेरी किसी भी कमज़ोर लकीर को
तुरंत
नया- सार्थक विकल्प देने को आतुर
मेरे इतने अपने...
हैं।
अच्छा लगता है।

अच्छे साथियों का साथ तो...
सबको ही अच्छा लगता है।

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