वो लौट आएं अगर तो समय और सामयिक सिद्धान्त जीवन और समझ के, सब बदल जाएंगे यकायक। वो लौट आएं अगर तो मुझे सही संबल मिलेगा सबल होने का जो उनके साथ होकर मिलता था मिलता है अब याद करके-बात कर कर। कल की रात बादलों में अठखेलियाँ करता दो कला छोटा चाँद देखा था कभी बादल उसके ऊपर लुढ़कते तो कभी वो खिसक आता घटाओं में से जैसे मेरा बेटा कहता कि वो खेलता है पार्क में लगी फिसल पट्टी पर। ये चाँद होगा पूरा और मैं कर रहा हूँगा याद अपने गुरुओं के आशीष को और उनको भी जिन्होंने मुझे बोने दिए मेरे सपने उनके सच्चे मन की धरा पर। तपाक से बोल आता हूँ मैं पूरे दशक की कहानी कैसे किया इतना कुछ स्थापित एक नवाचार जैसा। मेरे सिखाने-मुझसे सीखने वाले एकदम जादूगर हैं! कुछ भी करवा लेते हैं। यकायक याद भी आ जाते हैं! वो लौट आएं अगर तो कितना अच्छा हो!