साथी यूँ ही बढ़ते रहना...

 साथी!

तुझपे सातवाँ पत्ता आया है
सात जो बिल्कुल साथ-सा बुल जाता है...
उच्चारण में...
सप्त जो दिनों को
स्वरों को
रिश्तों के वचनों को...
रंगों को...
पड़ावों को गिनता है...
क्रमबद्ध करता है...
वही सात अगर मुझे भी मनबद्ध
जीवनबद्ध
साहसबद्ध
नियमबद्ध कर दे तो कितना सरल हो जाये
जीवन!
साथी यूँ ही बढ़ते रहना...
किसी भी रूप में
किसी भी नाम से।
बस हरे रहना!
साथी...
सातवाँ पत्ता मुबारक!

Comments

Popular posts from this blog

घूर के देखता हैं चाँद

तुम उठोगे जब कल सुबह...

आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है...