सुन मेरे हिन्दोस्तान

 सुन मेरे हिन्दोस्तान 

तुम अगर इंसान होते ना 

ज़ोर का गले लगाता 

रो भी पड़ता और चुप भी रहता!

कहता तुझसे कि इतना भी आसान नहीं हैं 

अपनी ही मिटटी से दूर रहना और 

भारतीय ही कहना खुद को!

अपने तिरंगे को निहारना विदेशी आसमान में 

और 

कभी-कभी ये भी होना की उदास रहना 

और कभी इतनी ख़ुशी कि सब भूल जाएँ!

कभी अपने खाने को खोजना 

जैसे जंगल में हिरन कोई कस्तूरी की खोज के हो 

हिंदुस्तान मेरे, तुम अगर इंसान होते ना 

लौटते ही तुम्हारी धरती पर, 

तुम्हारे पैर छूता और कहता - 

तुम कितने विशाल को, कितने ख़ालिस, कितने सच्चे 

जैसे हो समावेशी तो हो ही, 

मुझे समा के रखते हो खुद में और 

शरीर भेज देते हो सीमाओं के पार - 

देश तो अपना है न, अपने से है


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