गुरु मेरे! तुझसे हूँ मैं बड़भागी!

मेरे भाग्य में कहाँ लिखा था
साहस
विद्या
सफ़लता और
समर्पण!
पग-पग पर पहरा रख कर
पल-पल मुझे पाल कर
अपने संग मुझे संभाल कर
चाक बन घूमे हो आप।
आज भी वही गति-गंतव्य है
मुझ जैसे कितने कच्चे ढेर
सवांर दिए अपने अस्तित्व से जोड़ कर।
समय ने टकोर दी भी तो
आप ये
सुनिश्चित करते रहे...
मुझ तक पहुँचे बस वही
जो बढ़ाये-बनाये मुझे।
आप गुरु जो बने रहे
मेरे भाग्य की लकीरों में
अर्थ तभी तो आया,
आप गुरु जो बने रहे
मेरे मन में साहस तभी तो आया,
आप गुरु जो बने रहे
मुझे संभलना-संभालना आया,
आप जो रहे हैं जीवन में
मैंने स्वयं को बड़भागी पाया,
आप... गुरु बने गुरुवर तो ही
तो मैं
शिष्य कहलाया!
मुझमें साहस-विद्या-समर्पण
आपसे ही तो आया।
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