शब्द ज़रा मेहनत करने से ही सधते हैं।

शब्द ज़रा मेहनत करने से ही सधते हैं। (ये प्रेरणा पंक्ति Dinesh Dadhichi जी से)

तभी तो हम करते हैं साधना शबदों से।
सत्यम भी तो शब्द ही हैं होते
और शिव की सुन्दरता भी शब्द।
जब हमें शब्द नहीं मिलते तो कितना कुछ
अधुरा रह जाता है। और
शब्द निठ्ठले हो जाएं अगर तो
बिगड़े हुए बेटे के निसहाय पिता सा अफ़सोस
हो जाता है।
जब श्रवण होते हैं शब्द
तो हमारी आँखे बन
हमें जीवन तीर्थ करवाते हैं।
वाणी की शक्ति शब्द
पर्याय बना देते हैं असहाय के भी।
बरस कर भर देते हैं रिश्तों में मिठास
और खाली बरसे तो देते ही हैं खटास।
रास्ता बनाते हैं दीवारों से
मिलवाते हैं सांझे सरोकारों से।
और दिल से दिल तक कह जाते है मुहब्बत
चुप वाले चुप ही रह जाते हैं।
कितनी बार पिरोते हैं मोतियों की भांति
कभी- कभी यूँ ही बिखेर देते हैं आँगन में-
बच्चे के कंचों की तरह।
पटक भी देते हैं और संजो भी लेते हैं
अपने-अपनों के लिए।
मुझ-से कितनों की रोटी आती है शब्दों से ही।

कितना कुछ करते हैं देखो शब्द...
तभी तो कहा...
शब्द ज़रा मेहनत करने से ही सधते हैं।

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