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Showing posts from February, 2014

घर तो घर होता है... घर में माँ होती है

घर तो घर होता है घर में माँ होती है पापा होते हैं। घर में दिवार-छत के अलावा भी बहुत कुछ होता है घर में बाम होता है माँ से ही लगवाने को झूठा-मूठा जुकाम होता है। घर में धुप होती है छावं होती है चाव भी होता है। घर में ठहाके होते हैं घर में घड़ी की टिक-टिक भी है। आस-पड़ोस घर के आस-पास ही होता है, दीवारें सांझी बनती हैं मुंडेरें-गलियारे साथ-साथ सट जाते हैं। घर से ही तो काम पे जाया जाता है। घर ही तो लौट के आया जाता है। घर कब गरीब होता है भला सब कुछ कितना करीब होता है भला। अपनापन होता है जी घर में घर में फुसफुसाहट होती है एक को दुखता है तो सबको कराहट होती है। घर में बाज़ारी कुछ नहीं होता सब सुंदर होता है मन पे भारी कुछ नहीं होता घर में। घर में चप्पलें बंट जाती हैं चद्दर-कम्बल उलझ जाती हैं। घर में कितना कुछ छोटा-छोटा होता है। और घर कितना कितना बड़ा होता है।

शनि की बातें कच्ची । शनि की बातें सच्ची ।।

शनि कितने भेस बदल-बदल आता है ना मौसम देखता है और ना ही मौका ना तो जगह ना ही कभी देखता है वजह। कभी देखा कनस्तर में... आज भी वहीँ बस ताज़ा गेंदे के फूल की दो मालाएं घेरे हुए-सेवक तो कोई फिर भी पास नहीं। शनि कभी कनस्तर में कभी थाली और कभी डोलू में डूबा हुआ आ ही जाता है। और कैसा दिखता है भला बताओ तो जब तुम्हारी आँखों की तरफ खाली हथेली फैलती है मांगता है भीख एक ठिठुरता चेहरा झुर्रिओं भरा शरीर ढका-अधढका किस धर्म का कहूँ भला... रुखी हथेली-ठिठुरती आँखें पुकारती ज़रूरत भरी आवाज़ आने-जाने वाले को। और हर आने-जाने वाला मगन है जागरूकता के दंभ में। मौसम की ठंडी बदली हाथ जाने तो नहीं देती जेब में पड़े सूखे पैसों तक हाँ पर बात मन तक तो चली ही जाती है। शनि की बातें कच्ची । शनि की बातें सच्ची ।।