आभास...
आभास कितना सहज है होता
जब आता है पिरोये हुए
अहसास को अपने में।
आओ सहजता का आभास पिरोयें
अपने में।
जब आता है पिरोये हुए
अहसास को अपने में।
आओ सहजता का आभास पिरोयें
अपने में।
मैं जब बात करूं कोने की तो बात अपनी सी लगती है दो दीवारें मिलती हैं दो किरदार भागे जाते हैं कोने की ओर कुछ अपनी बातें भी तो कोने में ही हो पाती हैं. कोने में रहना संतुष्टि देता है सबल करता है प्रबल बनता है और शायद प्रवीण भी! कोने का केबिन कोई खोज नहीं है यह सब पाया हुआ है संजोया हुआ है बांटने आया हूँ बस! दफ़्तर में केबिन कोने में ही है.... अपनापन अपनेपन से हो ही जाता है!
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