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Showing posts from April, 2013

लो मैं लगा हूँ उकेरने आज प्यार तुम्हारा...

लो मैं लगा हूँ उकेरने आज प्यार तुम्हारा... और देखो सब निहार रहें हैं मुझे! मेरी मुस्कुराहट सबको अपनी-सी लग रही है मेरी हथेली में ढूंढ रहें हैं सब अपना-अपना सौभाग्य! वही हथेली-जिसपे चाँद बनाया था तुमने... मेहंदी रंग का! और मुझे वो धुधिया लगा था! कितनी ठंडक है स्पर्श में तुम्हारे! किसी को भिगो रहे हो-किसी को संभाल किसी को समेट रहे हो-किसी को खंगाल... तुम , कितने आप हो ! सभी रंग अपने को समर्पित कर चुके हैं संगीत-सा आ गया है चेहरे पे मेरे मेरा चेहरा तुम्हारा चेहरा है ना ! पलकें हैं ना तुम्हारी पंखुरियाँ हैं ना जो गुलाब की... और वो प्यारी-सी नखरो ठुड्डी... .... मैंने तो सब अपना मान लिया है मन से... बहूत प्यारे हो... सुंदर भी!

आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है...

बात करते-करते कितनी बातें बन जाती  हैं बन जाती हैं कितनी बातें- खेल खिलौने कितने आ जाते हैं आ जाते हैं खेल-खिलौने! आना जाना   लगा रहता है- जो जाता है वही आता है या कहूँ जो आता है- वो जाता है... संभालना-समझना-संजोना सब तो इस आने-जाने की बीच का रास्ता है और रास्ता साधन मात्र नहीं... अपने आकार को देखना-चलना ज़रूरी है आसक्त नहीं- सशक्त होना ज़रूरी है..