कितना अच्छा हो.....

कुछ शरारत सूझी है....कुछ बहुत दिनों बाद... कुछ कुछ तुम भी पढ़ लो...

कोने का कैबिन जागा है...
कुछ टुकड़े टूटे तुम्हारे बालों के
मेरे घर मिल जाएँ तो...
मेरे घर के शीशे पे तू अपनी
इक सुर्ख़-सी बिंदी चिपकाए तो

पहरों जाग-जाग के मुझको
...
सारी-सबकी बात बताए तो
अटक-अटक, भटक-भटक के, कुछ किस्से भूल भी जाये तो...
एक अचानक- बीच बात में मुझे
तू कुछ भी याद दिलाये तो...
देख मुझे सटी चौखट से तू
मद्धम-मद्धम मुसकाए तो
घर का चौका तेरा हो और हम
मिलकर कुछ बनायें तो...
मैं तुम्हारा आधार बनूँ और
तू मुझपे इठलाये तो...
रंग-बिरंगी सब रंगों की
हर रंगोली सजाएँ तो
मैं जब लिखूँ मन की बातें
तू ही मुझे सराहे तो...
गीत चुनें हम सांझे-सुंदर
और मिलकर उन्हें गायें तो
बचपन में लौटें साथी बनकर
तू ख़ूब मुझे हसाए तो
..............
तो भला-और-भला....क्या हो...
तू मुझे बताये तो...
कितना अच्छा हो
तू मुझे मिल जाये तो!!!

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