बस यही कहना था के एक तुम्हारे होने से.....
एक तुम्हारे होने से संकोच मिटता है मेरा...
सवालों से विचलित नहीं होता हूँ मैं...
बेवक़्त बादल बरस भी जाएँ तो भीगने का
अफ़सोस नहीं होने देते हो तुम...
कोई छुपा ले कुछ या कह दे कुछ बुरा... आपा नहीं खोने देते हो तुम...
तुम्हारे होने से हर कागज़ का अर्थ अब
समझ आता है...
तुम्हारे मुस्कुराने से ही जीवन को स्वीकारता हूँ मैं...
कितनी संतुष्टि से हर ओर निहारता हूँ मैं !
मुझे भय नहीं आता अब - ना मुझे ठोकर लगती है...
तुम होते हो ना मेरा हाथ थामने को,
बिल्कुल पास मेरे - साथ मेरे।
कितनी आसानी से मिठास घोल देते हो तुम
किसी भी फीकी शाम में...
कितने अपनेपन से बचपन ले आते हो मेरे आँगन में...
अपनी कलाई में चाँद पहन कर जब खिलखिलाते हो
तो सब सुंदर लगता है...
सब कुछ अपना-सा लगने लगता है साथ तुम्हारे...
आइने में अपना अंश छोड़ जाते हो
मुझे रंग बिरंगे रंग सिखाते हो...
सात सुर समझाते हो...
और मेरी ग़लतियों पे मद्धम - मद्धम मुस्कुराते हो...
हर बार मेरा ही होंसला बढ़ाते हो !!!
तुम नहीं होते हो तो अंधेरा सा लगता है रोशनी में...
अभाव आता है हर बरकत में लिपट कर...
घर की ओर जाती सीढ़ियाँ ख़त्म ही नहीं होती, सच में...
जो फ़ासले तुम्हारे साथ झट से तय हो जाया करते...
नहीं चला जाता उन पर अकेले....
मुश्किल होता है जवाब देना उन्हें....
सब पहचानते हैं ना तुम्हें....!!!!
मुझे कह के कहना पड़ता है सब अब
समझने के लिए किसी का........
छोड़ो.....
बस यही कहना था के
एक तुम्हारे होने से
फ़र्क हजारों पड़ते हैं।
सवालों से विचलित नहीं होता हूँ मैं...
बेवक़्त बादल बरस भी जाएँ तो भीगने का
अफ़सोस नहीं होने देते हो तुम...
कोई छुपा ले कुछ या कह दे कुछ बुरा... आपा नहीं खोने देते हो तुम...
तुम्हारे होने से हर कागज़ का अर्थ अब
समझ आता है...
तुम्हारे मुस्कुराने से ही जीवन को स्वीकारता हूँ मैं...
कितनी संतुष्टि से हर ओर निहारता हूँ मैं !
मुझे भय नहीं आता अब - ना मुझे ठोकर लगती है...
तुम होते हो ना मेरा हाथ थामने को,
बिल्कुल पास मेरे - साथ मेरे।
कितनी आसानी से मिठास घोल देते हो तुम
किसी भी फीकी शाम में...
कितने अपनेपन से बचपन ले आते हो मेरे आँगन में...
अपनी कलाई में चाँद पहन कर जब खिलखिलाते हो
तो सब सुंदर लगता है...
सब कुछ अपना-सा लगने लगता है साथ तुम्हारे...
आइने में अपना अंश छोड़ जाते हो
मुझे रंग बिरंगे रंग सिखाते हो...
सात सुर समझाते हो...
और मेरी ग़लतियों पे मद्धम - मद्धम मुस्कुराते हो...
हर बार मेरा ही होंसला बढ़ाते हो !!!
तुम नहीं होते हो तो अंधेरा सा लगता है रोशनी में...
अभाव आता है हर बरकत में लिपट कर...
घर की ओर जाती सीढ़ियाँ ख़त्म ही नहीं होती, सच में...
जो फ़ासले तुम्हारे साथ झट से तय हो जाया करते...
नहीं चला जाता उन पर अकेले....
मुश्किल होता है जवाब देना उन्हें....
सब पहचानते हैं ना तुम्हें....!!!!
मुझे कह के कहना पड़ता है सब अब
समझने के लिए किसी का........
छोड़ो.....
बस यही कहना था के
एक तुम्हारे होने से
फ़र्क हजारों पड़ते हैं।
Aap ki tarif mein likhe jitne bhi labz, Voh kam hai... :) bohat zada badia...heart touching <3 :)
ReplyDeleteWelcome! 19 se 20 Saathi kayi months me baney hain mere blog ke.. Himani! Thanks Beta !
Delete:) my pleasure sir :)
DeleteYour words have the essence of nature and surroundings
Deletethat create a ORA i.e. fantastic
as in reader feels each and everyline associating to himself