मुल्क कभी मतलबी नहीं होता!
तुम दोस्त हो मेरे
नाम कई सारे हैं तुम्हारे ...
कितनी सारी पहचान हैं और कितने रंग
कितना पुराना साथ है
कितने रास्ते तुम तक आने के
लौटने की वजह ही नहीं...
बस साथ रहने भर का आदेश देते हो तुम।
तुम्हारी बारिश कितनी अपनी है और कितने
अपने हो तुम।
जब भी गले लगने की ललक होती है
नाम कई सारे हैं तुम्हारे ...
कितनी सारी पहचान हैं और कितने रंग
कितना पुराना साथ है
कितने रास्ते तुम तक आने के
लौटने की वजह ही नहीं...
बस साथ रहने भर का आदेश देते हो तुम।
तुम्हारी बारिश कितनी अपनी है और कितने
अपने हो तुम।
जब भी गले लगने की ललक होती है
तुम्हें निहार लेता हूँ...
अपने आगोश में लेते हो मुझे
मेरे पक्कम-पक्के दोस्त बनकर।
कितना सच है ना
मुल्क कभी मतलबी नहीं होता!
अपने आगोश में लेते हो मुझे
मेरे पक्कम-पक्के दोस्त बनकर।
कितना सच है ना
मुल्क कभी मतलबी नहीं होता!
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