Posts

Showing posts from June, 2012

अब भला दिन है क्या और धूप है क्या.

बोलता है तो पता लगता है ज़ख्म उसका भी नया लगता है। सुनता नहीं है जब वो कोई बात मेरी , ख़ुदा कसम -बिलकुल-ख़ुदा लगता है। मुहब्बतों की परख ना जाने कौन करे ? दावा-ए-उल्फ़त हो गया हवा... लगता है। मैं तुमसे कुछ पूछूं और तुम खामोश रहो ! ऐसा तो-सच कहूँ- ख्वाब भी सज़ा लगता है। अब भला दिन है क्या और धूप है क्या... ?! चल ' शिख़र ' काम पे चल- सूरज चढ़ा लगता है।

अच्छे साथियों का साथ तो... सबको ही अच्छा लगता है।

दो ज़बानें अलग अलग तौर-तरीके अपने अपने ढंग जीने के मरने के। बातों में छुपे मतलब भी भिन्न-भिन्न कागज़ अलग-वर्ण और शब्द भी अलग। नाम भी एक जैसा नहीं... और दाम भी नहीं एक सा..... फिर भला इतना अपनापन.... कहाँ बोया- कहाँ से उग आया है ये... इतनी हथेलियों का साथ.... जैसे मेरी किसी भी कमज़ोर लकीर को तुरंत नया- सार्थक विकल्प देने को आतुर मेरे इतने अपने... हैं। अच्छा लगता है। अच्छे साथियों का साथ तो... सबको ही अच्छा लगता है।