मितर प्यारे नूँ, हाल मुरिदाँ दा कहणा
इतना भी आसान नहीं नींद सो जाना चैन की। जो जानते हैं सुकून का रास्ता चलते रहते उसपर और जो नहीं जानते भटकते रहते ता-उम्र! जो दिख रहा हर ओर कि इंसान एक-दूसरे को ही काट रहा-छोड़ रहा औ...
मैं जब बात करूं कोने की तो बात अपनी सी लगती है दो दीवारें मिलती हैं दो किरदार भागे जाते हैं कोने की ओर कुछ अपनी बातें भी तो कोने में ही हो पाती हैं. कोने में रहना संतुष्टि देता है सबल करता है प्रबल बनता है और शायद प्रवीण भी! कोने का केबिन कोई खोज नहीं है यह सब पाया हुआ है संजोया हुआ है बांटने आया हूँ बस! दफ़्तर में केबिन कोने में ही है.... अपनापन अपनेपन से हो ही जाता है!