पहली बार आज सुबह...
पहली बार आज सुबह... हर रोज़ की तरह दफ़्तरी भाग-दौड़ थी कुछ नया ना भी होता तो कुछ अचम्भा न था... पता-सा था कि जाना है दफ़्तर सड़क रास्ते-सड़क बनकर। रोज़ का आना जाना ऐसा है के जैसे मेरे और उस कंकरीट संसार के बीच मैं ही सड़क बन गया हूँ। खैर... आज की सुबह अलग हुई कैसे भला... देर तक खेला-की बातें मैंने उस से और उसने जवाब भी दिए सब सही और सटीक जवाब। स्वर आते हैं सारे उसे। और मुझे वो संगीत लगता है। गोद में लिया सीधे हाथ तरफ और काँधे लगाया वाम हस्त थपकी दोनों जोड़ी आँखों का मिलना मद्धम मद्धम सी नींद झुकती पलकों में प्यार और फिर उसने अपना मुझ-सा चेहरा रखा मेरे काँधे नन्ही हथेली से थामा मुझे और पहली-सी बार मुझे गले लगाया... सो गया-मीठी मीठी नीनि! ...और समझाया कि प्यार-अपनत्व-हमारा रिश्ता कितना दैवीय है। :एकलव्य के लिए!