इतवार बड़ा अजीब रहा है दोस्तो
इतवार बड़ा अजीब रहा है दोस्तो दिन बड़ा सही मगर ग़रीब रहा है दोस्तो. यूँ तो शहर-सरहदें अलग रही हैं वो हमेशा करीब रहा है दोस्तो. फकिरों से बक्शिश मे मिला-जुला मिला है सब ख़ुद लिखा कुछ, बाकी पहले से लिखा नसीब मिला है दोस्तो. एक खिड़की से रोशनी आई-तो दूसरी से गयी निकल धूप का रास्ता तो आसमान के जानिब रहा है दोस्तो. क्या कहोगे इंसान को, और आदमी को तुम जो हुआ है ज़मीन पे वाज़िब हुआ है दोस्तो.