हम दोनों एक-नाम भी हो जाएं...
मुझे मेरी कविताएं कहनी हैं और तुम्हें कहना है वो जो दोहराव से परे आभास के इस ओर की बात है। मुझे कहना है कि जब भी तुम कहते हो शब्द् सटीक-सुन्दर मैं उकेर देता हूँ पंछियों का कलरव बारिश की रिम-झिम खिलखिलाहट छुटपन की और रूमानी मुहब्बत की बातें... नाम तो मेरा होता है... सोचा है मैंने कि क्यों न ऐसा करें हम दोनों एक-नाम भी हो जाएं। एक तो हैं ही...!