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हम दोनों एक-नाम भी हो जाएं...

मुझे मेरी कविताएं कहनी हैं और तुम्हें कहना है वो जो दोहराव से परे आभास के इस ओर की बात है। मुझे कहना है कि जब भी तुम कहते हो शब्द् सटीक-सुन्दर मैं उकेर देता हूँ पंछियों का कलरव बारिश की रिम-झिम खिलखिलाहट छुटपन की और रूमानी मुहब्बत की बातें... नाम तो मेरा होता है... सोचा है मैंने कि क्यों न ऐसा करें हम दोनों एक-नाम भी हो जाएं। एक तो हैं ही...!

तुम उठोगे जब कल सुबह...

तुम उठोगे जब कल सुबह सब वैसा ही होगा क्या? वैसा के जैसा तुमने देखा इस भद्दे सपने में तुमने देखा किस तरह से अपना घर लूटता है कोई ठहाके लगाकर। तुम जब सुबह उठो कल तो अपने छोटे-छोटे बच्चों से कुछ बात ना करना। बिल्कुल चुप रहना-बाहर जाना घूम आना। वो जिस दिन तक अपने स्कूल ना जाए एक बार खेलने ना जाए पास के पार्क में एक नज़र कुछ खरीदने न जाए... तब तक मत करना बात कुछ आज रात तक की। वो आएगा जब वापस देखता हुआ शहर को-क़स्बे को तो... पूछेगा तुमसे! पापा... कौन आया था हमारे यहां... किसको इतना गुस्सा आया... वो मेरा दोस्त नहीं आया आज स्कूल। पापा... मम्मा... मैंने आज बहुत सारे फौजी देखे हमारे शहर में सब जगह। ये उन्हीं हेलीकॉप्टर में आये होंगे ना? वो हेलिकॉप्टर क्यूँ आये थे पापा? पापा... आप कहाँ गये हुए थे... माँ.. चाचा..अंकल... ताऊ.. दादा... आप सब कहाँ गए हुए थे? ... मुझे बहुत बुरा सपना आया अभी... सब जल रहा था...